नमस्ते दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम jawaharlal nehru जी के जीवन के बारे में जानेगे.
जन्म :- 14 नवम्बर 1889
मृत्यु :- 27 मई 1964 (उम्र 74)
राजनीतिक दल :- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगी :- कमला कौल
संबंध :- नेहरू–गांधी परिवार
बच्चे :- इन्दिरा गांधी
शैक्षिक सम्बद्धता :- ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज, इन्स ऑफ़ कोर्ट
पेशा :- बैरिस्टर, लेखक, राजनीतिज्ञ
पुरस्कार/सम्मान भारत रत्न (1955)
जवाहरलाल नेहरु जी का जन्म 14 नवम्बर 1889 में इलाहबाद, उत्तर-पश्चिमी प्रान्त, ब्रिटिश भारत में हुआ था. जिसे हम अभी (उत्तर प्रदेश) के नाम से जानते है. जवाहरलाल नेहरु जी के पिता नाम मोतीलाल नेहरू था मोतीलाल नेहरू का जीवन एव मृत्यु (1861–1931), मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर थे जो की कश्मीरी पण्डित थे. और मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे, और मोतीलाल नेहरू जी को स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में दो बार चुने गए. जवाहरलाल नेहरु जी की माता का नाम स्वरूपरानी थुस्सू था जिनकी जीवन एव मृत्यु (1868–1938), स्वरूपरानी थुस्सू जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थी, और वह मोतीलाल नेहरु की दूसरी पत्नी थी. मोतीलाल नेहरु व उनकी पहली पत्नी की प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी. और मोतीलाल नेहरु के तिन बच्चे थे, जिनमे से जवाहरलाल नेहरु तीन बच्चों में सबसे बड़े थे, जिनमें बाकी दो लड़कियां थी. जवाहरलाल नेहरु की पहली बहन का नाम विजया लक्ष्मी, था. जोकि बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी थी. और उनकी सबसे छोटी बहन का नाम कृष्णा हठीसिंग, था जोकि एक उल्लेखनीय लेखिका बनी और उन्होंने अपने परिवार-जनों से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं.
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जवाहरलाल नेहरू जी ने अपनी शिक्षा दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी. और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज जो की (लंदन) में है वह से पूरी की थी. इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की. जिसके बाद इंग्लैंड में उन्होंने सात साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया.
और जवाहरलाल नेहरू जी 1912 में भारत लौटे आए और वकालत शुरू की. भारत लोटने के बाद 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई. और 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रुल लीग में शामिल हो गए. जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू जी राजनीति में पैर रखा. उनकी राजनीति में उनकी असली शिक्षा दो साल बाद 1919 में शुरू हुई. जब जवाहरलाल नेहरू जी पहली बार महात्मा गांधी के संपर्क में आए. उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया हुआ था. जवाहरलाल नेहरू जी, महात्मा गांधी जी के साथ सक्रिय थे. लेकिन शांतिपूर्ण, और सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए थे.
जवाहरलाल नेहरू जी, ने महात्मा गांधी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल लिया. और जवाहरलाल नेहरू जी और मोतीलाल नेहरू जी ने पश्चिमी कपड़ों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया.जिसके बाद वे अब एक खादी कुर्ता और गांधी टोपी पहनने लगे. और जवाहर लाल नेहरू जी ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया. जिसके कारन इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए. और फिर कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
जवाहरलाल नेहरू जी को 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की. जिसके बाद 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग की कमी का हवाला देकर अपने पद का त्यागपत्र दे दिया.
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जवाहर लाल नेहरू जी ने 1926 से 1928 तक, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में सेवा की. और 1928-29 में, कांग्रेस के वार्षिक सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया. जिसके बाद उस सत्र में जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया, जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य का दर्जा पाने की मांग का समर्थन किया. मुद्दे को हल करने के लिए, गांधी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए दो साल का समय दिया जाएगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय संघर्ष शुरू करेगा. और वही नेताओ की मांग थी की जो अंग्रजो को दिए गए. समय को कम कर के एक साल कर दिया जाए. जिसका ब्रिटिश सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया.
दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू जी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. इसे पहले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू जी के पिता मोतीलाल नेहरु थे. इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें ‘पूर्ण स्वराज्य’ की मांग की गई. 26 जनवरी 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू जी ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया. और गांधी जी ने भी 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया. यह आंदोलन काफ़ी खासा सफल रहा और इसने ब्रिटिश सरकार को प्रमुख राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया.
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जब ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम 1935 प्रख्यापित किया तब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया. इस द्वारं जवाहरलाल नेहरू जी चुनाव के बाहर रहे लेकिन अपने पार्टी के लिए ज़ोरों सोरो के साथ पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया. और इसी कारन कांग्रेस ने लगभग हर प्रांत में सरकारों का गठन किया और केन्द्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की.
एक बार फिर जवाहरलाल नेहरू जी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 1936 और 1937 में चुने गए थे. और जवाहरलाल नेहरू जी को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 1945 में छोड़ दिया गया. 1947 में भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय उन्होंने ब्रिटिश सरकार के साथ हुई वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भागीदारी की.
जब सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने पर जब प्रभावी प्रधानमन्त्री के लिये कांग्रेस में मतदान किया गया तो सरदार पटेल को सर्वाधिक मत मिले. और उसके बाद सर्वाधिक मत आचार्य कृपलानी को मिले थे. लेकिन गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमन्त्री बनाया गया.
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इस तरह जवाहरलाल नेहरू 1947 में वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमन्त्री बने थे. जब अंग्रेजों ने भारत को आजाद किया था, तब भारत में करीब 500 देशी रजवाड़ों थे. जिसे उस समय अंग्रेजों ने एक साथ स्वतंत्र किया था. और उस समय जवाहरलाल नेहरू के सामने सबसे बडी चुनौती थी. की उन 500 देशी रजवाड़ों को एक झंडे के नीचे लाना. जिसके लिए उन्होंने भारत के पुनर्गठन के रास्ते में उभरी हर चुनौती का समझदारी पूर्वक सामना किया. जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. और उन्होंने योजना आयोग का गठन किया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया. उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ. और नेहरू जी ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाया.
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जवाहरलाल नेहरू स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते को मूर्तरूप देने जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ की भूमिका में रहे. पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया और लाओस के जैसे कई अन्य विस्फोटक मुद्दों के समाधान में पर्दे के पीछे रह कर भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. जवाहरलाल नेहरू को वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. लेकिन नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए. पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुंचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए. नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया. नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद / किंचित उनकी मौत भी इसी कारण हुई. 27 मई 1964 को नई दिल्ली, में जवाहरलाल नेहरू जी को दिल का दौरा पड़ा जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी.
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